बेरोजगारी पर निबंध

भूमिका

बेरोजगारी (Unemployment) वर्तमान समय में भारत सहित पूरे विश्व के लिए एक जटिल और गंभीर सामाजिक-आर्थिक चुनौती है। यह समस्या न केवल आर्थिक विकास की गति को धीमा करती है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने और व्यक्तिगत कल्याण पर भी गहरा नकारात्मक प्रभाव डालती है। किसी भी राष्ट्र के लिए, उसकी मानव पूंजी ही सबसे बड़ी संपत्ति होती है; यदि यह पूंजी बेकार बैठी रहे, तो वह देश कभी भी अपनी पूरी क्षमता हासिल नहीं कर सकता। भारत जैसे विशाल और युवा आबादी वाले विकासशील राष्ट्र के संदर्भ में, बेरोजगारी की चुनौती और भी विकट हो जाती है।

बेरोजगारी का अर्थ और परिभाषा

साधारण शब्दों में, बेरोजगारी उस स्थिति को कहते हैं जब एक सक्षम (योग्य) और इच्छुक (तैयार) व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी दर पर उसकी योग्यता के अनुरूप काम नहीं मिल पाता है। यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि इसमें वे लोग शामिल नहीं होते जो अपनी इच्छा से काम नहीं करना चाहते हैं (जैसे विद्यार्थी या गृहिणियाँ)। भारतीय संदर्भ में, बेरोजगारी को मुख्य रूप से दो भागों में समझा जाता है:

  1. अनैच्छिक बेरोजगारी (Involuntary Unemployment): जब व्यक्ति काम करने के लिए तैयार और योग्य होता है, लेकिन बाजार में काम उपलब्ध नहीं होता।
  2. स्वैच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment): जब व्यक्ति काम करने में सक्षम होता है, लेकिन वर्तमान वेतन दर पर काम करने को तैयार नहीं होता। हमारा ध्यान अनैच्छिक बेरोजगारी पर केंद्रित है।

बेरोजगारी के प्रमुख प्रकार

भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति के आधार पर बेरोजगारी कई रूपों में सामने आती है:

  • प्रच्छन्न/छिपी हुई बेरोजगारी (Disguised Unemployment): यह मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में पाई जाती है। इसमें एक कार्य को करने के लिए जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है, उससे अधिक श्रमिक लगे होते हैं। अतिरिक्त श्रमिकों को हटाने से उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
  • मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment): कृषि और इससे संबंधित उद्योगों में काम वर्ष के कुछ निश्चित महीनों में ही उपलब्ध होता है, शेष समय श्रमिक बेरोजगार रहते हैं।
  • खुली बेरोजगारी (Open Unemployment): जब कोई व्यक्ति काम की तलाश में होता है, लेकिन उसे बिल्कुल भी काम नहीं मिलता और वह पूरी तरह से निष्क्रिय रहता है।
  • संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment): यह अर्थव्यवस्था की संरचना में मूलभूत परिवर्तन (जैसे पुरानी तकनीक का बंद होना या नई तकनीकों का आना) के कारण उत्पन्न होती है। श्रमिकों के पास उस समय के लिए आवश्यक कौशल की कमी होती है।
  • शैक्षिक बेरोजगारी (Educated Unemployment): जब शिक्षित व्यक्ति को भी उसकी योग्यता के अनुरूप या कोई भी रोजगार प्राप्त नहीं होता।

भारत में बेरोजगारी के मुख्य कारण

भारत में बेरोजगारी की जड़ों में कई जटिल कारक शामिल हैं:

  1. जनसंख्या का तीव्र विकास (Rapid Population Growth): बढ़ती हुई आबादी हर वर्ष श्रम बल में बड़ी संख्या में नए लोगों को जोड़ती है। रोजगार सृजन की दर इस तीव्र वृद्धि दर के साथ तालमेल बिठाने में विफल रही है।
  2. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली (Defective Education System): हमारी शिक्षा प्रणाली आज भी अधिकतर सैद्धांतिक (theoretical) है, जिसमें व्यावहारिक, कौशल-आधारित और रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण की कमी है। डिग्रीधारी तो बढ़ रहे हैं, लेकिन कुशल श्रमिक नहीं।
  3. औद्योगिक क्षेत्र का धीमा विकास (Slow Growth of the Industrial Sector): कृषि पर अत्यधिक निर्भरता के बावजूद, औद्योगिक और सेवा क्षेत्र का विस्तार उस दर से नहीं हो पाया है जो विशाल श्रम बल को खपा सके। लघु एवं कुटीर उद्योगों को पर्याप्त समर्थन का अभाव है।
  4. तकनीकी उन्नति और स्वचालन (Technological Advancements and Automation): आधुनिक तकनीकें, मशीनें और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) कुछ क्षेत्रों में श्रम की आवश्यकता को कम कर रही हैं, जिससे तकनीकी बेरोजगारी बढ़ रही है।
  5. निवेश और पूंजी निर्माण की कमी (Lack of Investment and Capital Formation): अपर्याप्त निवेश के कारण नए उद्योगों और बुनियादी ढाँचे का विकास धीमा है, जो रोजगार सृजन का मुख्य स्रोत होते हैं।

बेरोजगारी के गंभीर दुष्परिणाम

बेरोजगारी के दुष्परिणाम केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर भी विनाशकारी होते हैं:

  • आर्थिक नुकसान (Economic Loss): देश की कुल उत्पादन क्षमता घट जाती है, क्योंकि मानव संसाधन का समुचित उपयोग नहीं हो पाता। इससे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर धीमी हो जाती है।
  • गरीबी और भुखमरी (Poverty and Hunger): आय का स्रोत समाप्त होने से व्यक्ति और परिवार गरीबी के कुचक्र में फँस जाते हैं, जिससे जीवन-स्तर गिरता है।
  • सामाजिक अस्थिरता और अपराध (Social Instability and Crime): युवा पीढ़ी में निराशा और असंतोष बढ़ता है, जो नशाखोरी, चोरी, हिंसा और अन्य सामाजिक अपराधों को बढ़ावा देता है। यह कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
  • मानसिक और भावनात्मक तनाव (Mental and Emotional Stress): बेरोजगार व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी, हीन भावना, और गंभीर मानसिक तनाव का शिकार होते हैं, जिससे स्वास्थ्य और उत्पादकता दोनों प्रभावित होते हैं।

बेरोजगारी दूर करने के उपाय

इस विकराल समस्या के समाधान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है जिसमें सरकार, उद्योग और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी हो:

  • कौशल विकास पर ज़ोर (Focus on Skill Development): शिक्षा प्रणाली को राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) के अनुरूप बनाकर व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिए। ‘स्किल इंडिया मिशन’ जैसी पहलों को और प्रभावी बनाना होगा।
  • उद्यमिता को बढ़ावा (Promoting Entrepreneurship): ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘मुद्रा योजना’ जैसी योजनाओं के माध्यम से छोटे और मझोले उद्यमों (MSMEs) को वित्तीय सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान कर युवा उद्यमियों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश (Investment in Infrastructure): सड़कों, रेलवे, बिजली और संचार जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास में भारी निवेश किया जाना चाहिए, क्योंकि ये क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में रोजगार सृजित करते हैं।
  • जनसंख्या नियंत्रण और नियोजन (Population Control and Planning): दीर्घकालिक समाधान के लिए परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को सफल बनाना और जनसंख्या वृद्धि दर पर नियंत्रण रखना अपरिहार्य है।
  • सरकारी योजनाओं का सुदृढ़ीकरण (Strengthening Government Schemes): महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी योजनाओं को और पारदर्शी तथा प्रभावी ढंग से लागू कर ग्रामीण रोजगार को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

बेरोजगारी का समाधान किसी एक नीति या योजना से संभव नहीं है; यह सरकार, निजी क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थानों और स्वयं नागरिकों के बीच समन्वय और सहभागिता की मांग करता है। भारत को अपनी विशाल युवा शक्ति को बोझ नहीं, बल्कि एक जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) के रूप में देखना होगा। यदि हम अपनी शिक्षा को बाजार की मांग के अनुरूप ढालते हैं, उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करते हैं, और उद्योगों के विकास में तेजी लाते हैं, तो भारत न केवल बेरोजगारी पर विजय प्राप्त कर सकता है, बल्कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभर सकता है। आत्मनिर्भरता और कौशल विकास की राह ही इस समस्या से मुक्ति दिलाएगी।

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