Vishnu Sahasranamam Marathi is a revered Sanskrit hymn that contains 1000 names of Lord Vishnu. Lord Vishnu is regarded as one of the principal deities in Hinduism. This hymn was composed by Vyasa and was imparted to Yudhishthira during the Kurukshetra war by the dying warrior Bhishma, who recited it from his deathbed on the battlefield.
Lord Vishnu is considered the preserver and sustainer of the universe. As such, Vishnu holds the highest place in Hindu culture. He is worshipped across India, as it is believed that Lord Vishnu’s incarnations, such as Lord Rama and Lord Krishna, descend to earth to restore balance and eliminate evil.
In Hinduism, the trinity of Brahma, Vishnu, and Shiva are the most revered gods. Lord Brahma is the creator of the universe, while Lord Vishnu preserves it, and Lord Shiva is the destroyer of evil forces on earth.
Vishnu Sahasranamam in Marathi PDF / श्री विष्णूसहस्त्रनाम स्तोत्रातील हजार नावे
अ. क्र. | नाम | मराठी अर्थ |
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१ | विश्वम् | सर्व विश्वाचे कारणरूप |
२ | विष्णूः | जो सर्वत्र व्याप्त आहे |
३ | वषट्कारः | ज्याचं उद्देशाने यज्ञात वशटक्रिया केली जाते , जो यज्ञस्वरूप आहे |
४ | भूतभव्यभवत्प्रभुः | भूत, वर्तमान आणि भविष्याचा स्वामी |
५ | भूतकृत् | सर्व सजीवांचा निर्माता |
६ | भूतभृत् | सर्व सजीवांचा पालनकर्ता |
७ | भावः | प्रपंच रूपाने उत्पन्न होणारा |
८ | भूतात्मा | सर्व जीवांचा आत्मा, सर्वांतरयामी |
९ | भूतभावनः | सर्व जीवांच्या जन्म आणि अभिवृद्धीस कारणीभूत |
१० | पूतात्मा | पवित्र आत्मा |
११ | परमात्मा | देवांचा देव, श्रेष्ठ नित्य शुद्ध बद्धमुक्त आत्मा, |
१२ | मुक्तानां परमा गतिः | मुक्त पुरुषाची परम गती, जीवन्मुक्त आत्म्यांंचे परम लक्ष्य |
१३ | अव्ययः | कधीही नाश न होणारा |
१४ | पुरुषः | शरीरात राहणारा, पूर्ण पुरुषत्व असलेला |
१५ | साक्षी | स्वता:च्या ज्ञानाने पाहणारा |
१६ | क्षेत्रज्ञः | शरीराला जाणणारा |
१७ | अक्षरः | ज्याचा नाश होऊ शकत नाही तो |
१८ | योगः | जो योग भावात वसलेला आहे, जो योगा द्वारे जाणता येऊ शकतो तो |
१९ | योगविदां नेता | योग्यांचा मार्गदर्शक/नेतृत्व करणारा |
२० | प्रधानपुरुषेश्वरः | मूळ प्रकृतीचा ज्ञाता ईश्वर |
२१ | नारसिंहवपुः | जो नृसिंहरुपी आणि मनुष्यरूपी देहधारी आहे असा ईश्वर |
२२ | श्रीमान् | लक्ष्मीयुक्त, हृदयावर लक्ष्मीला धारण करणारा |
२३ | केशवः | केशी राक्षसाचा संहारकर्ता, सुंदर कुरळे केस असलेला, |
२४ | पुरुषोत्तमः | क्षार व अक्षर या दोन्ही पैकी श्रेष्ठ, सर्व पुरुषांत उत्तम असलेला पूर्णपुरुष |
२५ | सर्वः | जो सर्वकाळी सर्वत्र आहे |
२६ | शर्वः | प्रलयकाळी रुद्ररूपाने सर्व संहारक |
२७ | शिवः | जो पूर्णपणे शुद्ध आहे, जो शिवस्वरूप आहे |
२८ | स्थाणुः | अचल, ठाम आणि स्थिर आहे |
२९ | भूतादिः | प्राणिमात्रांचे आदीकारण जो पंचमहाभूतात आहे |
३० | निधिरव्ययः | प्रलयकाळी सर्व प्राणिमात्र ज्यात विलीन होतात |
३१ | सम्भवः | स्वेच्छेने पुन्हा पुन्हा जन्मणारा |
३२ | भावनः | आपल्या भक्तांना सर्वकाही देणारा |
३३ | भर्ता | सर्व जग नियंता |
३४ | प्रभवः | दिव्या जन्म धारण करणारा, पंचमहाभूताचे मूळ |
३५ | प्रभुः | सर्वशक्तिमान परमेश्वर |
३६ | ईश्वरः | उपाधिरहित ऐश्वर्य असलेला, जो सर्वकाही करू शकतो |
३७ | स्वयम्भूः | स्वतःचा स्वतः निर्माता असणारा |
३८ | शम्भुः | शुभ कर्ता |
३९ | आदित्यः | बारा आदित्य पैकी विष्णूचे नाव नाव असलेला आदित्य, सूर्य/सूर्या सम |
४० | पुष्कराक्षः | कमल नयन |
४१ | महास्वनः | वेदरूप गर्जना कर्ता आवाज असणारा |
४२ | अनादि-निधनः | ज्याचाना जन्म झालाना अंत होणार आहे |
४३ | धाता | विश्वाचे धारण करणारा |
४४ | विधाता | कर्म व कर्मफलाचा निर्माता, सुष्टीकर्ता |
४५ | धातुरुत्तमः | सर्व प्रपंच धारण करणारा सर्वश्रेष्ठ, (परमाणू, पदार्थाचे सूक्ष्मस्वरूप) |
४६ | अप्रमेयः | ज्याचे मोजमाप होऊ शकत नाही असा तो |
४७ | हृषीकेशः | इंद्रियांचा स्वामी, इंद्रियांवर विजय मिळवलेला |
४८ | पद्मनाभः | ज्याच्या नाभीतून कमळ उगवले आहे तो |
४९ | अमरप्रभुः | देवांचाही देव |
५० | विश्वकर्मा | सृष्टीचा निर्माता |
५१ | मनुः | महर्षी मनू, वेदमंत्र स्वरूप |
५२ | त्वष्टा | संहारकाळी प्राण्यांना क्षीण करणारा |
५३ | स्थविष्ठः | स्थूलरूपी |
५४ | स्थविरो ध्रुवः | अत्यंत प्राचीन, स्थिर |
५५ | अग्राह्यः | इंद्रियातीत, सहज न कळणारा |
५६ | शाश्वतः | ज्याचे अस्तित्व कायम आहे |
५७ | कृष्णः | सावळा, सच्चिदानंद, |
५८ | लोहिताक्षः | लाल डोळ्यांचा |
५९ | प्रतर्दनः | विनाशकर्ता |
६० | प्रभूतः | सार्वभौम, पूर्णस्वरूप |
६१ | त्रिकाकुब्धाम | वर, खाली व मध्ये अशा तिन्ही दिशांचे आश्रयस्थान |
६२ | पवित्रम् | हृदयाला (चित्त) शुद्ध करणारा |
६३ | मंगलं-परम् | अशुभ नष्ट करून शुभ देणारा, अत्यंत शुभ |
६४ | ईशानः | पंचमहाभूताचा स्वामी, |
६५ | प्राणदः | प्राणदान देणारा (प्राणाचे रक्षण करणारा) |
६६ | प्राणः | जीवनशक्ती |
६७ | ज्येष्ठः | सर्वात प्रथम/सर्वात मोठा |
६८ | श्रेष्ठः | सर्वोत्तम, दिव्य-भव्य |
६९ | प्रजापतिः | सर्व जीवजंतूचा स्वामी |
७० | हिरण्यगर्भः | ब्रह्मदेवाचा आत्मा, सर्व ब्रह्मांडांंचा केंद्रबिंदू |
७१ | भूगर्भः | पृथ्वीला धारण करणारा |
७२ | माधवः | लक्ष्मीपती |
७३ | मधुसूदनः | मधू-कैटभ राक्षसांंचा नाश करणारा |
७४ | ईश्वरः | देवता |
७५ | विक्रमी | शूर-वीर, सर्व विक्रमांचा स्वामी |
७६ | धन्वी | दैवी धनुष्यधारी, शारंगधनुष्य धारी |
७७ | मेधावी | मेधा म्हणजे धारणशक्तीचा स्वामी |
७८ | विक्रमः | गरुडावर बसून सर्वत्र फिरणारा |
७९ | क्रमः | चालना देणारा |
८० | अनुत्तमः | सर्वश्रेष्ठ |
८१ | दुराधर्षः | ज्याच्यावर हल्ला/आक्रमण होऊ शकत नाही असा तो, अजिंक्य |
८२ | कृतज्ञः | सर्व कर्मांचा कर्ता, सर्व प्राण्यांची कर्मे जाणणारा |
८३ | कृतिः | कृतीचा आधार |
८४ | आत्मवान् | आपल्याच महिम्यात राहणारा, सर्व जगतात अंतर्भूत असलेला |
८५ | सुरेशः | देवांचा स्वामी |
८६ | शरणम् | आश्रयदाता |
८७ | शर्म | परमानंद स्वरूप |
८८ | विश्वरेताः | अनंत ब्रह्मांंडाचं बिज |
८९ | प्रजाभवः | सकल मनुष्यजनांचा निर्माता |
९० | अहः | प्रकाशरूप, काळ स्वरूप |
९१ | संवत्सरः | काळरूप |
९२ | व्यालः | सर्परूप (चपळ) |
९३ | प्रत्ययः | ज्याच्या अस्तित्वाचा प्रत्यय येतो |
९४ | सर्वदर्शनः | जो सर्वकाही पहातो |
९५ | अजः | अजन्मा |
९६ | सर्वेश्वरः | सर्वांचा नियंता |
९७ | सिद्धः | जो स्वयंसिद्ध आहे |
९८ | सिद्धिः | जो सर्व दाता आहे |
९९ | सर्वादिः | जगताच्या पूर्वीपासूनचा |
१०० | अच्युतः | ज्याचे पतन होऊ शकत नाही, (जो भक्तांचे पतन होऊ देत नाही) |
१०१ | वृषाकपिः | धर्म व वराह रूप |
१०२ | अमेयात्मा | ज्याचे मोजमाप होऊ शकत नाही. |
१०३ | सर्वयोगविनिसृतः | जो विविध योग मार्गाने जाणला जाऊ शकतो. |
१०४ | वसुः | जो सर्व भूतांच्या (सजीव-प्राणिमात्रांच्या) ठायी वसतो |
१०५ | वसुमनाः | ज्याचे ठाई ऐश्वर्य, संपत्ती आहे. ज्याच्या मनाला कोणतेही विकार स्पर्श करू शकत नाहीत. |
१०६ | सत्यः | अंतिम सत्य. सज्जनांचा हितकारक. |
१०७ | समात्मा | जो भेदभाव न करता सर्वांशी एक समान वागतो. सर्वांच्या अंतरंगात एक समान वसलेला. |
१०८ | सम्मितः | सर्वमान्य. जो सर्व योग्य पदार्थांनी जाणला जाऊ शकतो. |
विष्णु सहस्त्रनाम चे फायदे मराठी
भगवान विष्णु सहस्रनामामध्ये भगवान नारायणाच्या 1000 नावांची यादी आहे. या पुस्तकात वाचकांना वैश्विक सीमा ओलांडण्याची ताकद आहे असे म्हटले जाते. युधिष्ठिराला स्वतः भीष्म पितामहांनी विष्णु सहस्रनामाच्या वैभवाची माहिती दिली होती.
धर्मग्रंथानुसार गुरुवारी भगवान विष्णूचा मान राखला जातो. गुरुवारी नारायणाची पूजा केल्याने असाधारण परिणाम होतो आणि सर्व समस्यांपासून मुक्ती मिळते असे म्हटले जाते. या दिवशी श्री नारायणाचे “विष्णु सहस्रनाम” पाठ करणे अत्यंत उपयुक्त असल्याचे दिसून येते. विष्णु सहस्रनामामध्ये भगवान विष्णूंचा उल्लेख 1000 नावांनी केला आहे.
विष्णुसहस्त्रनामाचा पाठ रोज केल्यास माणसाच्या जीवनातील सर्वात मोठी अडचण मिटते असे म्हणतात आणि त्यांना कीर्ती, सुख, धन, समृद्धी, यश, आरोग्य आणि भाग्यही मिळते. जर तुम्ही दररोज असे करू शकत नसाल तर फक्त गुरुवारी या श्लोकाची पुनरावृत्ती करा. असे केल्यास तुमचे प्रत्येक स्वप्न पूर्ण होऊ शकते.
भीष्म पितामहांच्या अधिकाराने सांगितले
श्री विष्णु सहस्रनाम हे गाणे आश्चर्यकारकपणे प्रभावी आहे. कुलपिता भीष्मांनीही त्यांचे पराक्रम मान्य केले. असे म्हटले जाते की महाभारताच्या वेळी युधिष्ठिराने भीष्म पितामह यांच्याकडून शिकण्याची इच्छा व्यक्त केली जेव्हा तो बाणांच्या शय्येवर विश्रांती घेऊन त्याला मारण्यासाठी योग्य क्षणाची वाट पाहत होता.
विश्वात असे काय आहे जे सर्वशक्तिमान आहे आणि या महासागराने व्यापले जाऊ शकते, युधिष्ठिराने त्याला विचारले होते? भीष्म पितामहांनी त्यांच्या प्रश्नाला उत्तर देताना युधिष्ठिरांसमोर विष्णू सहस्रनामाचे वर्णन केले.
भीष्म पितामह यांनी विष्णू सहस्रनामाची महिमा सांगताना श्री विष्णू विश्वात सर्वत्र विराजमान असल्याचा दावा केला. तो जगाचा रक्षणकर्ता आहे.
सहस्रनामांची पुनरावृत्ती करून किंवा श्रवण केल्याने सर्व संकटे दूर होतात. सर्व वेळ विष्णु सहस्रमाचे पठण करणे फायदेशीर ठरेल. जो कोणी हे पुस्तक वाचतो तो दुर्दैव, धोका, काळी जादू, दुर्घटना आणि वाईट डोळ्यांपासून बचाव करतो.
विष्णु सहस्त्रनाम जप म्हणजे काय?
आंघोळीनंतर सकाळी लवकर उठून पिवळे कपडे घाला. पिवळे चंदन, पिवळी फुले, पिवळे अक्षत, धूप इत्यादी पिवळ्या वस्तू गृह मंदिरात अर्पण करा.
विष्णु सहस्रनामाचे पठण करताना गूळ आणि हरभरा देवाला अर्पण करा. विष्णू सहस्रनामात भगवान विष्णूंना शिव, शंभू आणि रुद्र असेही संबोधले आहे तेव्हा शिव आणि विष्णू एक आहेत हे स्पष्ट होते.
जर तुम्हाला दररोज विष्णु सहस्रनाम वाचता येत नसेल तर किमान नारायणाच्या मंत्राचा पाठ करा. तरीसुद्धा, ते तुम्हाला सहस्रनामाइतकेच गुण प्रदान करू शकते.
विष्णु सहस्त्रनाम 1000 नाम
1 | विश्वम् | 2 | अपांनिधि |
3 | विष्णु | 4 | अधिष्ठानम |
5 | वषट्कार | 6 | अप्रमत्त |
7 | भूतभव्यभवत्प्रभुः | 8 | प्रतिष्ठित |
9 | भूतकृत | 10 | स्कन्द |
11 | भूतभृत | 12 | स्कन्दधर |
13 | भाव | 14 | धुर्य |
15 | भूतात्मा | 16 | वरद |
17 | भूतभावन | 18 | वायुवाहन |
19 | पूतात्मा | 20 | वासुदेव |
21 | परमात्मा | 22 | बृहद्भानु |
23 | मुक्तानां परमागतिः | 24 | आदिदेव |
25 | अव्ययः | 26 | पुरन्दर |
27 | पुरुषः | 28 | अशोक |
29 | साक्षी | 30 | तारण |
31 | क्षेत्रज्ञः | 32 | तार |
33 | अक्षर | 34 | शूर |
35 | योगः | 36 | शौरि |
37 | योगविदां नेता | 38 | जनेश्वर |
39 | प्रधानपुरुषेश्वर | 40 | अनुकूल |
41 | नारसिंहवपुः | 42 | शतावर्त |
43 | श्रीमान् | 44 | पद्मी |
45 | केशव | 46 | पद्मनिभेक्षण |
47 | पुरुषोत्तम | 48 | पद्मनाभ |
49 | सर्व | 50 | अरविन्दाक्ष |
51 | शर्व | 52 | पद्मगर्भ |
53 | शिव | 54 | शरीरभृत् |
55 | स्थाणु | 56 | महार्दि |
57 | भूतादि | 58 | ऋद्ध |
59 | निधिरव्यय | 60 | वृद्धात्मा |
61 | सम्भव | 62 | महाक्ष |
63 | भावन | 64 | गरुडध्वज |
65 | भर्ता | 66 | अतुल |
67 | प्रभव | 68 | शरभ |
69 | प्रभु | 70 | भीम |
71 | ईश्वर | 72 | समयज्ञ |
73 | स्वयम्भू | 74 | हविर्हरि |
75 | शम्भु | 76 | सर्वलक्षणलक्षण्य |
77 | आदित्य | 78 | लक्ष्मीवान् |
79 | पुष्कराक्ष | 80 | समितिञ्जय |
81 | महास्वन | 82 | विक्षर |
83 | अनादिनिधन | 84 | रोहित |
85 | धाता | 86 | मार्ग |
87 | विधाता | 88 | हेतु |
89 | धातुरुत्तम | 90 | दामोदर |
91 | अप्रमेय | 92 | सह |
93 | हृषीकेश | 94 | महीधर |
95 | पद्मनाभ | 96 | महाभाग |
97 | अमरप्रभु | 98 | वेगवान |
99 | विश्वकर्मा | 100 | अमिताशन |
101 | मनु | 102 | उद्भव |
103 | त्वष्टा | 104 | क्षोभण |
105 | स्थविष्ठ | 106 | देव |
107 | स्थविरो ध्रुव | 108 | श्रीगर्भ |
109 | अग्राह्य | 110 | परमेश्वर |
111 | शाश्वत | 112 | करणं |
113 | कृष्ण | 114 | कारणं |
115 | लोहिताक्ष | 116 | कर्ता |
117 | प्रतर्दन | 118 | विकर्ता |
119 | प्रभूत | 120 | गहन |
121 | त्रिककुब्धाम | 122 | गुह |
123 | पवित्रं | 124 | व्यवसाय |
125 | मङ्गलंपरम् | 126 | व्यवस्थान |
127 | ईशान | 128 | संस्थान |
129 | प्राणद | 130 | स्थानद |
131 | प्राण | 132 | ध्रुव |
133 | ज्येष्ठ | 134 | परर्द्धि |
135 | श्रेष्ठ | 136 | परमस्पष्ट |
137 | प्रजापति | 138 | तुष्ट |
139 | हिरण्यगर्भ | 140 | पुष्ट |
141 | भूगर्भ | 142 | शुभेक्षण |
143 | माधव | 144 | राम |
145 | मधुसूदन | 146 | विराम |
147 | ईश्वर | 148 | विरज |
149 | विक्रमी | 150 | मार्ग |
151 | धन्वी | 152 | नेय |
153 | मेधावी | 154 | नय |
155 | विक्रम | 156 | अनय |
157 | क्रम | 158 | वीर |
159 | अनुत्तम | 160 | शक्तिमतां श्रेष्ठ |
161 | दुराधर्ष | 162 | धर्म |
163 | कृतज्ञ | 164 | धर्मविदुत्तम |
165 | कृति | 166 | वैकुण्ठ |
167 | आत्मवान् | 168 | पुरुष |
169 | सुरेश | 170 | प्राण |
171 | शरणम | 172 | प्राणद |
173 | शर्म | 174 | प्रणव |
175 | विश्वरेता | 176 | पृथु |
177 | प्रजाभव | 178 | हिरण्यगर्भ |
179 | अह | 180 | शत्रुघ्न |
181 | सम्वत्सर | 182 | व्याप्त |
183 | व्याल | 184 | वायु |
185 | प्रत्यय | 186 | अधोक्षज |
187 | सर्वदर्शन | 188 | ऋतु |
189 | अज | 190 | सुदर्शन |
191 | सर्वेश्वर | 192 | काल |
193 | सिद्ध | 194 | परमेष्ठी |
195 | सिद्धि | 196 | परिग्रह |
197 | सर्वादि | 198 | उग्र |
199 | अच्युत | 200 | सम्वत्सर |
201 | वृषाकपि | 202 | दक्ष |
203 | अमेयात्मा | 204 | विश्राम |
205 | सर्वयोगविनिःसृत | 206 | विश्वदक्षिण |
207 | वसु | 208 | विस्तार |
209 | वसुमना | 210 | स्थावरस्थाणु |
211 | सत्य | 212 | प्रमाणम् |
213 | समात्मा | 214 | बीजमव्ययम् |
215 | सम्मित | 216 | अर्थ |
217 | सम | 218 | अनर्थ |
219 | अमोघ | 220 | महाकोश |
221 | पुण्डरीकाक्ष | 222 | महाभोग |
223 | वृषकर्मा | 224 | महाधन |
225 | वृषाकृति | 226 | अनिर्विण्ण |
227 | रुद्र | 228 | स्थविष्ठ |
229 | बहुशिरा | 230 | अभू |
231 | बभ्रु | 232 | धर्मयूप |
233 | विश्वयोनि | 234 | महामख |
235 | शुचिश्रवा | 236 | नक्षत्रनेमि |
237 | अमृत | 238 | नक्षत्री |
239 | शाश्वतस्थाणु | 240 | क्षम |
241 | वरारोह | 242 | क्षाम |
243 | महातपा | 244 | समीहन |
245 | सर्वग | 246 | यज्ञ |
247 | सर्वविद्भानु | 248 | ईज्य |
249 | विश्वक्सेन | 250 | महेज्य |
251 | जनार्दन | 252 | क्रतु |
253 | वेद | 254 | सत्रं |
255 | वेदविद | 256 | सतांगति |
257 | अव्यङ्ग | 258 | सर्वदर्शी |
259 | वेदाङ्ग | 260 | विमुक्तात्मा |
261 | वेदवित् | 262 | सर्वज्ञ |
263 | कवि | 264 | ज्ञानमुत्तमम् |
265 | लोकाध्यक्ष | 266 | सुव्रत |
267 | सुराध्यक्ष | 268 | सुमुख |
269 | धर्माध्यक्ष | 270 | सूक्ष्म |
271 | कृताकृत | 272 | सुघोष |
273 | चतुरात्मा | 274 | सुखद |
275 | चतुर्व्यूह | 276 | सुहृत् |
277 | चतुर्दंष्ट्र | 278 | मनोहर |
279 | चतुर्भुज | 280 | जितक्रोध |
281 | भ्राजिष्णु | 282 | वीरबाहु |
283 | भोजनं | 284 | विदारण |
285 | भोक्ता | 286 | स्वापन |
287 | सहिष्णु | 288 | स्ववश |
289 | जगदादिज | 290 | व्यापी |
291 | अनघ | 292 | नैकात्मा |
293 | विजय | 294 | नैककर्मकृत् |
295 | जेता | 296 | वत्सर |
297 | विश्वयोनि | 298 | वत्सल |
299 | पुनर्वसु | 300 | वत्सी |
301 | उपेन्द्र | 302 | रत्नगर्भ |
303 | वामन | 304 | धनेश्वर |
305 | प्रांशु | 306 | धर्मगुप |
307 | अमोघ | 308 | धर्मकृत् |
309 | शुचि | 310 | धर्मी |
311 | उर्जित | 312 | सत् |
313 | अतीन्द्र | 314 | असत् |
315 | संग्रह | 316 | क्षरम् |
317 | सर्ग | 318 | अक्षरम् |
319 | धृतात्मा | 320 | अविज्ञाता |
321 | नियम | 322 | सहस्रांशु |
323 | यम | 324 | विधाता |
325 | वेद्य | 326 | कृतलक्षण |
327 | वैद्य | 328 | गभस्तिनेमि |
329 | सदायोगी | 330 | सत्त्वस्थ |
331 | वीरहा | 332 | सिंह |
333 | माधव | 334 | भूतमहेश्वर |
335 | मधु | 336 | आदिदेव |
337 | अतीन्द्रिय | 338 | महादेव |
339 | महामाय | 340 | देवेश |
341 | महोत्साह | 342 | देवभृद्गुरु |
343 | महाबल | 344 | उत्तर |
345 | महाबुद्धि | 346 | गोपति |
347 | महावीर्य | 348 | गोप्ता |
349 | महाशक्ति | 350 | ज्ञानगम्य |
351 | महाद्युति | 352 | पुरातन |
353 | अनिर्देश्यवपु | 354 | शरीरभूतभृत् |
355 | श्रीमान | 356 | भोक्ता |
357 | अमेयात्मा | 358 | कपीन्द्र |
359 | महाद्रिधृक् | 360 | भूरिदक्षिण |
361 | महेष्वास | 362 | सोमप |
363 | महीभर्ता | 364 | अमृतप |
365 | श्रीनिवास | 366 | सोम |
367 | सतांगति | 368 | पुरुजित |
369 | अनिरुद्ध | 370 | पुरुसत्तम |
371 | सुरानन्द | 372 | विनय |
373 | गोविन्द | 374 | जय |
375 | गोविदांपति | 376 | सत्यसंध |
377 | मरीचि | 378 | दाशार्ह |
379 | दमन | 380 | सात्वतांपति |
381 | हंस | 382 | जीव |
383 | सुपर्ण | 384 | विनयितासाक्षी |
385 | भुजगोत्तम | 386 | मुकुन्द |
387 | हिरण्यनाभ | 388 | अमितविक्रम |
389 | सुतपा | 390 | अम्भोनिधि |
391 | पद्मनाभ | 392 | अनन्तात्मा |
393 | प्रजापति | 394 | महोदधिशय |
395 | अमृत्यु | 396 | अन्तक |
397 | सर्वदृक् | 398 | अज |
399 | सिंह | 400 | महार्ह |
401 | सन्धाता | 402 | स्वाभाव्य |
403 | सन्धिमान् | 404 | जितामित्र |
405 | स्थिर | 406 | प्रमोदन |
407 | अज | 408 | आनन्द |
409 | दुर्मर्षण | 410 | नन्दन |
411 | शास्ता | 412 | नन्द |
413 | विश्रुतात्मा | 414 | सत्यधर्मा |
415 | सुरारिहा | 416 | त्रिविक्रम |
417 | गुरु | 418 | महर्षि कपिलाचार्य |
419 | गुरुतम | 420 | कृतज्ञ |
421 | धाम | 422 | मेदिनीपति |
423 | सत्य | 424 | त्रिपद |
425 | सत्यपराक्रम | 426 | त्रिदशाध्यक्ष |
427 | निमिष | 428 | महाशृङ्ग |
429 | अनिमिष | 430 | कृतान्तकृत् |
431 | स्रग्वी | 432 | महावराह |
433 | वाचस्पतिउदारधी | 434 | गोविन्द |
435 | अग्रणी | 436 | सुषेण |
437 | ग्रामणी | 438 | कनकाङ्गदी |
439 | श्रीमान् | 440 | गुह्य |
441 | न्याय | 442 | गभीर |
443 | नेता | 444 | गहन |
445 | समीरण | 446 | गुप्त |
447 | सहस्रमूर्धा | 448 | चक्रगदाधर |
449 | विश्वात्मा | 450 | वेधा |
451 | सहस्राक्ष | 452 | स्वाङ्ग |
453 | सहस्रपात् | 454 | अजित |
455 | आवर्तन | 456 | कृष्ण |
457 | निवृत्तात्मा | 458 | दृढ |
459 | संवृत | 460 | संकर्षणोऽच्युत |
461 | संप्रमर्दन | 462 | वरुण |
463 | अहःसंवर्तक | 464 | वारुण |
465 | वह्नि | 466 | वृक्ष |
467 | अनिल | 468 | पुष्कराक्ष |
469 | धरणीधर | 470 | महामना |
471 | सुप्रसाद | 472 | भगवान् |
473 | प्रसन्नात्मा | 474 | भगहा |
475 | विश्वधृक | 476 | आनन्दी |
477 | विश्वभुज | 478 | वनमाली |
479 | विभु | 480 | हलायुध |
481 | सत्कर्ता | 482 | आदित्य |
483 | सत्कृत | 484 | ज्योतिरादित्य |
485 | साधु | 486 | सहिष्णु |
487 | जह्नुनु | 488 | गतिसत्तम |
489 | नारायण | 490 | सुधन्वा |
491 | नर | 492 | खण्डपरशु |
493 | असंख्येय | 494 | दारुण |
495 | अप्रमेयात्मा | 496 | द्रविणप्रद |
497 | विशिष्ट | 498 | दिवःस्पृक् |
499 | शिष्टकृत | 500 | सर्वदृग्व्यास |
501 | शुचि | 502 | वाचस्पतिरयोनिज |
503 | सिद्धार्थ | 504 | त्रिसामा |
505 | सिद्धसंकल्प | 506 | सामग |
507 | सिद्धिद | 508 | साम |
509 | सिद्धिसाधन | 510 | निर्वाणं |
511 | वृषाही | 512 | भेषजं |
513 | वृषभ | 514 | भिषक् |
515 | विष्णु | 516 | संन्यासकृत |
517 | वृषपर्वा | 518 | शम |
519 | वृषोदर | 520 | शान्त |
521 | वर्धन | 522 | निष्ठा |
523 | वर्धमान | 524 | शान्ति |
525 | विविक्त | 526 | परायणम् |
527 | श्रुतिसागर | 528 | शुभाङ्ग |
529 | सुभुज | 530 | शान्तिद |
531 | दुर्धर | 532 | स्रष्टा |
533 | वाग्मी | 534 | कुमुद |
535 | महेन्द्र | 536 | कुवलेशय |
537 | वसुद | 538 | गोहित |
539 | वसु | 540 | गोपति |
541 | नैकरूप | 542 | गोप्ता |
543 | बृहद्रूप | 544 | वृषभाक्ष |
545 | शिपिविष्ट | 546 | वृषप्रिय |
547 | प्रकाशन | 548 | अनिवर्ती |
549 | ओजस्तेजोद्युतिधर | 550 | निवृत्तात्मा |
551 | प्रकाशात्मा | 552 | संक्षेप्ता |
553 | प्रतापन | 554 | क्षेमकृत् |
555 | ऋद्ध | 556 | शिव |
557 | स्पष्टाक्षर | 558 | श्रीवत्सवक्षा |
559 | मन्त्र | 560 | श्रीवास |
561 | चन्द्रांशु | 562 | श्रीपति |
563 | भास्करद्युति | 564 | श्रीमतां वर |
565 | अमृतांशूद्भव | 566 | श्रीद |
567 | भानु | 568 | श्रीश |
569 | शशबिन्दु | 570 | श्रीनिवास |
571 | सुरेश्वर | 572 | श्रीनिधि |
573 | औषधं | 574 | श्रीविभावन |
575 | जगतसेतु | 576 | श्रीधर |
577 | सत्यधर्मपराक्रमः | 578 | श्रीकर |
579 | भूतभव्यभवन्नाथ | 580 | श्रेय |
581 | पवन | 582 | श्रीमान |
583 | पावन | 584 | लोकत्रयाश्रय |
585 | अनल | 586 | स्वक्ष |
587 | कामहा | 588 | स्वङ्ग |
589 | कामकृत् | 590 | शतानन्द |
591 | कान्त | 592 | नन्दि |
593 | काम | 594 | ज्योतिर्गणेश्वर |
595 | कामप्रद | 596 | विजितात्मा |
597 | प्रभु | 598 | अविधेयात्मा |
599 | युगादिकृत | 600 | सत्कीर्ति |
601 | युगावर्त | 602 | छिन्नसंशय |
603 | नैकमाय | 604 | उदीर्ण |
605 | महाशन | 606 | सर्वतश्चक्षु |
607 | अदृश्य | 608 | अनीश |
609 | व्यक्तरूप | 610 | शाश्वतस्थिर |
611 | सहस्रजित् | 612 | भूशय |
613 | अनन्तजित् | 614 | भूषण |
615 | इष्ट | 616 | भूति |
617 | अविशिष्ट | 618 | विशोक |
619 | शिष्टेष्ट | 620 | शोकनाशन |
621 | शिखण्डी | 622 | अर्चिष्मान |
623 | नहुष | 624 | अर्चित |
625 | वृष | 626 | कुम्भ |
627 | क्रोधहा | 628 | विशुद्धात्मा |
629 | क्रोधकृत्कर्ता | 630 | विशोधन |
631 | विश्वबाहु | 632 | अनिरुद्ध |
633 | महीधर | 634 | अप्रतिरथ |
635 | अच्युत | 636 | प्रद्युम्न |
637 | प्रथित | 638 | अमितविक्रम |
639 | प्राण | 640 | कालनेमिनिहा |
641 | प्राणद | 642 | वीर |
643 | वासवानुज | 644 | शौरि |
645 | वाजसन | 646 | शूरजनेश्वर |
647 | शृङ्गी | 648 | त्रिलोकात्मा |
649 | जयन्त | 650 | त्रिलोकेश |
651 | सर्वविज्जयी | 652 | केशव |
653 | सुवर्णबिन्दु | 654 | केशिहा |
655 | अक्षोभ्य | 656 | हरि |
657 | सर्ववागीश्वरेश्वर | 658 | कामदेव |
659 | महाह्रद | 660 | कामपाल |
661 | महागर्त | 662 | कामी |
663 | महाभूत | 664 | कान्त |
665 | महानिधि | 666 | कृतागम |
667 | कुमुद | 668 | अनिर्देश्यवपु |
669 | कुन्दर | 670 | विष्णु |
671 | कुन्द | 672 | वीर |
673 | पर्जन्य | 674 | अनन्त |
675 | पावन | 676 | धनंजय |
677 | अनिल | 678 | ब्रह्मण्य |
679 | अमृतांश | 680 | ब्रह्मकृत |
681 | अमृतवपु | 682 | ब्रह्मा |
683 | सर्वज्ञ | 684 | ब्रह्म |
685 | सर्वतोमुख | 686 | ब्रह्मविवर्धन |
687 | सुलभ | 688 | ब्रह्मवित |
689 | सुव्रत | 690 | ब्राह्मण |
691 | सिद्ध | 692 | ब्रह्मी |
693 | शत्रुजित | 694 | ब्रह्मज्ञ |
695 | शत्रुतापन | 696 | ब्राह्मणप्रिय |
697 | न्यग्रोध | 698 | महाक्रम |
699 | उदुम्बर | 700 | महाकर्मा |
701 | अश्वत्थ | 702 | महातेजा |
703 | चाणूरान्ध्रनिषूदन | 704 | महोरग |
705 | सहस्रार्चि | 706 | महाक्रतु |
707 | सप्तजिह्व | 708 | महायज्वा |
709 | सप्तैधा | 710 | महायज्ञ |
711 | सप्तवाहन | 712 | महाहवि |
713 | अमूर्ति | 714 | स्तव्य |
715 | अनघ | 716 | स्तवप्रिय |
717 | अचिन्त्य | 718 | स्तोत्रं |
719 | भयकृत | 720 | स्तुति |
721 | भयनाशन | 722 | स्तोता |
723 | अणु | 724 | रणप्रिय |
725 | बृहत | 726 | पूर्ण |
727 | कृश | 728 | पूरयिता |
729 | स्थूल | 730 | पुण्य |
731 | गुणभृत | 732 | पुण्यकीर्ति |
733 | निर्गुण | 734 | अनामय |
735 | महान् | 736 | मनोजव |
737 | अधृत | 738 | तीर्थकर |
739 | स्वधृत | 740 | वसुरेता |
741 | स्वास्य | 742 | वसुप्रद |
743 | प्राग्वंश | 744 | वसुप्रद |
745 | वंशवर्धन | 746 | वासुदेव |
747 | भारभृत् | 748 | वसु |
749 | कथित | 750 | वसुमना |
751 | योगी | 752 | हवि |
753 | योगीश | 754 | सद्गति |
755 | सर्वकामद | 756 | सत्कृति |
757 | आश्रम | 758 | सत्ता |
759 | श्रमण | 760 | सद्भूति |
761 | क्षाम | 762 | सत्परायण |
763 | सुपर्ण | 764 | शूरसेन |
765 | वायुवाहन | 766 | यदुश्रेष्ठ |
767 | धनुर्धर | 768 | सन्निवास |
769 | धनुर्वेद | 770 | सुयामुन |
771 | दण्ड | 772 | भूतावास |
773 | दमयिता | 774 | वासुदेव |
775 | दम | 776 | सर्वासुनिलय |
777 | अपराजित | 778 | अनल |
779 | सर्वसह | 780 | दर्पहा |
781 | नियन्ता | 782 | दर्पद |
783 | अनियम | 784 | दृप्त |
785 | अयम | 786 | दुर्धर |
787 | सत्त्ववान् | 788 | अपराजित |
789 | सात्त्विक | 790 | विश्वमूर्ति |
791 | सत्य | 792 | महामूर्ति |
793 | सत्यधर्मपरायण | 794 | दीप्तमूर्ति |
795 | अभिप्राय | 796 | अमूर्तिमान् |
797 | प्रियार्ह | 798 | अनेकमूर्ति |
799 | अर्ह | 800 | अव्यक्त |
801 | प्रियकृत् | 802 | शतमूर्ति |
803 | प्रीतिवर्धन | 804 | शतानन |
805 | विहायसगति | 806 | एक |
807 | ज्योति | 808 | नैक |
809 | सुरुचि | 810 | सव |
811 | हुतभुक | 812 | कः |
813 | विभु | 814 | किं |
815 | रवि | 816 | यत् |
817 | विरोचन | 818 | तत् |
819 | सूर्य | 820 | पदमनुत्तमम् |
821 | सविता | 822 | लोकबन्धु |
823 | रविलोचन | 824 | लोकनाथ |
825 | अनन्त | 826 | माधव |
827 | हुतभुक | 828 | भक्तवत्सल |
829 | भोक्ता | 830 | सुवर्णवर्ण |
831 | सुखद | 832 | हेमाङ्ग |
833 | नैकज | 834 | वराङ्ग |
835 | अग्रज | 836 | चन्दनाङ्गदी |
837 | अनिर्विण्ण | 838 | वीरहा |
839 | सदामर्षी | 840 | विषम |
841 | लोकाधिष्ठानाम् | 842 | शून्य |
843 | अद्भूत | 844 | घृताशी |
845 | सनात् | 846 | अचल |
847 | सनातनतम | 848 | चल |
849 | कपिल | 850 | अमानी |
851 | कपि | 852 | मानद |
853 | अव्यय | 854 | मान्य |
855 | स्वस्तिद | 856 | लोकस्वामी |
857 | स्वस्तिकृत् | 858 | त्रिलोकधृक् |
859 | स्वस्ति | 860 | सुमेधा |
861 | स्वस्तिभुक | 862 | मेधज |
863 | स्वस्तिदक्षिण | 864 | धन्य |
865 | अरौद्र | 866 | सत्यमेधा |
867 | कुण्डली | 868 | धराधर |
869 | चक्री | 870 | तेजोवृष |
871 | जन्ममृत्युजरातिग | 872 | द्युतिधर |
873 | भूर्भुव:स्वस्तरु | 874 | सर्वशस्त्रभृतांवर |
875 | तार | 876 | प्रग्रह |
877 | सविता | 878 | निग्रह |
879 | प्रपितामह | 880 | व्यग्र |
881 | यज्ञ | 882 | नैकशृङ्ग |
883 | यज्ञपति | 884 | गदाग्रज |
885 | यज्वा | 886 | चतुर्मूर्ति |
887 | यज्ञाङ्ग | 888 | चतुर्बाहु |
889 | यज्ञवाहन | 890 | चतुर्व्यूह |
891 | यज्ञभृत् | 892 | चतुर्गति |
893 | यज्ञकृत् | 894 | चतुरात्मा |
895 | यज्ञी | 896 | चतुर्भाव |
897 | यज्ञभुक | 898 | चतुर्वेदवित् |
899 | यज्ञसाधन | 900 | एकपात् |
901 | यज्ञान्तकृत् | 902 | समावर्त |
903 | यज्ञगुह्यम् | 904 | अनिवृत्तात्मा |
905 | अन्नं | 906 | दुर्जय |
907 | अन्नाद | 908 | दुरतिक्रम |
909 | आत्मयोनि | 910 | दुर्लभ |
911 | स्वयंजात | 912 | दुर्गम |
913 | वैखान | 914 | दुर्ग |
915 | सामगायन | 916 | दुरावासा |
917 | देवकीनन्दन | 918 | दुरारिहा |
919 | सृष्टा | 920 | शुभाङ्ग |
921 | क्षितीश | 922 | लोकसारङ्ग |
923 | पापनाशन | 924 | सुतन्तु |
925 | शङ्खभृत् | 926 | तन्तुवर्धन |
927 | नन्दकी | 928 | इन्द्रकर्मा |
929 | चक्री | 930 | महाकर्मा |
931 | शार्ङ्गधन्वा | 932 | कृतकर्मा |
933 | गदाधर | 934 | कृतागम |
935 | रथाङ्गपाणि | 936 | उद्भव |
937 | अक्षोभ्य | 938 | सुन्दर |
939 | सर्वप्रहरणायुध | 940 | सुन्द |
941 | चतुरश्र | 942 | रत्ननाभ |
943 | गभीरात्म | 944 | सुलोचन |
945 | विदिश | 946 | अर्क |
947 | व्यादिश | 948 | विक्रमी |
949 | दिश | 950 | उर्जितशासन |
951 | अनादि | 952 | शब्दातिग |
953 | भुवोभुव | 954 | शब्दसह |
955 | लक्ष्मी | 956 | शिशिर |
957 | सुवीर | 958 | शर्वरीकर |
959 | अधाता | 960 | अक्रूर |
961 | आधारनिलय | 962 | पेशल |
963 | ऊर्ध्वग | 964 | दक्ष |
965 | एकात्मा | 966 | दक्षिण |
967 | जनजन्मादि | 968 | क्षमिणां वर |
969 | जनन | 970 | विद्वत्तम |
971 | तत्त्वं | 972 | वीतभय |
973 | तत्त्ववित् | 974 | पुण्यश्रवणकीर्तन |
975 | पण | 976 | उत्तारण |
977 | पुष्पहास | 978 | दुष्कृतिहा |
979 | प्रजागर | 980 | पुण्य |
981 | प्रणव | 982 | दुःस्वप्ननाशन |
983 | प्रमाणम् | 984 | वीरहा |
985 | प्राणजीवन | 986 | रक्षण |
987 | प्राणद | 988 | सन्त |
989 | प्राणनिलय | 990 | जीवन |
991 | प्राणभृत् | 992 | पर्यवस्थित |
993 | भीम | 994 | अनन्तरूप |
995 | भीमपराक्रम | 996 | अनन्तश्री |
997 | रुचिराङ्गद | 998 | जितमन्यु |
999 | विश्वम | 1000 | भयापह |
पवित्र हिंदू साहित्य “विष्णु सहस्रनामम” मध्ये भगवान विष्णूची 1,000 नावे आहेत, हिंदू धर्मातील मुख्य देवतांपैकी एक (सहस्रनाम म्हणजे “एक हजार नावे”). हे प्राचीन भारतीय महाकाव्य “महाभारत” चा एक महत्वाचा घटक आहे, विशेषत: “अनुशासन पर्व” (याला “सूचना पुस्तक” किंवा “शासनाचे पुस्तक” देखील म्हटले जाते). भगवान विष्णूंच्या सन्मानार्थ विष्णु सहस्रनाम या स्तोत्राचे पठण करणे भक्तांना अतिशय शुभ आणि सामर्थ्यवान मानले जाते.
कुरुक्षेत्राच्या रणांगणावर बाणांच्या पलंगावर पडून असलेले प्रसिद्ध ऋषी भीष्म आणि पांडव बंधूंपैकी एक युधिष्ठिर यांच्यात हा संवाद घडतो. युधिष्ठिर भीष्माला त्याच्या निधनापूर्वी आध्यात्मिक सल्ला विचारतो आणि भीष्म त्याला विष्णु सहस्रनामासह अनेक शिकवणी देतात.
स्वर्गीय आशीर्वाद, संरक्षण आणि आध्यात्मिक विकास मिळविण्यासाठी विष्णु सहस्रनामाचे पठण किंवा जप केले जाते. भगवान विष्णूंप्रती त्यांची भक्ती व्यक्त करण्यासाठी आणि त्यांचे आशीर्वाद मागण्यासाठी भक्तांद्वारे हे ध्यान किंवा प्रार्थनेच्या रूपात अनेकदा पाठ केले जाते.
विष्णु सहस्रनाम हे अनेक हिंदू संप्रदायांच्या अनुयायांकडून आदरणीय आहे आणि इतर भाषांमध्ये त्याची अनेक भाषांतरे आणि प्रतिपादने आहेत. धर्मग्रंथ भगवान विष्णूच्या अनेक सद्गुण आणि गुणधर्मांवर प्रकाश टाकते, विश्वाचा संरक्षक आणि संरक्षक म्हणून त्यांच्या भूमिकेवर जोर देते.