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This Is A Composition In The Devotion Of Rudra Shiva Composed By The Hindu Bhakti Poet Tulsidas Ji Maharaj. Tulsidas Ji Composed This Eulogy In The Late Fifteenth Century In Uttar Pradesh, India, And Created Many Other Literary Pieces Including The Magnum Opus Ram Charit Manas.
रुद्राष्टकम शिव की अभिव्यक्ति को समर्पित एक अष्टकम या अष्टक (आठ छंदों वाली प्रार्थना) है। इसकी रचना स्वामी तुलसीदास ने पंद्रहवीं शताब्दी में की थी। रुद्र को शिव की भयावह अभिव्यक्ति के रूप में माना जाता है, जिनसे डरना चाहिए। शंकर को प्रसन्न करने के लिए स्तुति का यह आठ गुना भजन गाया गया था। जो भी इसका पाठ करेगा, उस पर भगवान शिव प्रसन्न होंगे।
नमामि शमिशन निर्वाण रूपम हिंदू भक्ति कवि तुलसीदास जी महाराज द्वारा रचित रुद्र शिव की भक्ति में एक रचना है। तुलसीदास जी ने उत्तर प्रदेश, भारत में पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में इस स्तुति की रचना की और महान कृति राम चरित मानस सहित कई अन्य साहित्यिक कृतियों का निर्माण किया।
श्रीरामचरितमानस में लिखित ‘नमामि शमिशन निर्वाण रूपम’ ( Namami Shamishan Nirvan Roopam ) अपने-आप में अद्भुत स्तुति है। अगर कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है तो किसी प्राचीन शिवालय या घर में ही कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह शाम ‘रुद्राष्टकम’ स्तुति का पाठ करने से शिवजी भयंकर से भयंकर शत्रुओं का नाश पल भर में करके सदैव अपने शरणागत की रक्षा करते हैं।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
अर्थात- हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं। गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥
अर्थात- निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं। मिलेगा मनचाहा वरदान, ऐसे करें बाबा भैरव को प्रसन्न
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥
अर्थात- जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर है, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान है, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥
अर्थात- जिनके कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं. सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र है, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु है। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥
अर्थात- प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
अर्थात- कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।
न यावद् उमानाथपादारविन्दं। भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥
अर्थात- जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥
अर्थात- मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए। हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥
अर्थात- जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।
Namami Shamishan Nirvan Roopam,
Vibhum Vyapakam Brahma Vedah Swaroopam.
Nijam Nirgunam Nirvikalpam Niriham,
Chidaakaasha Maakaasha Vaasam Bhaje Ham.
Niraakaara Monkaara Moolam Turiiyam,
Giraa Gyanan Gotiita Miisham Giriisham.
Karaalam Mahaa Kaala Kaalam Kripaalam,
Gunaagaara Samsara Paaram Nato Ham.
Tushaa Raadri Sankaasha Gauram Gabhiram,
Manobhuta Koti Prabha Sri Sariram.
Sphuran Mauli Kallolini Charu Ganga,
Lasad Bhaala Balendu Kanthe Bhujangaa.
Chalatkundalam Shubh Netram Visalam,
Prasannaa Nanam Nila Kantham Dayaalam.
Mrgadhisa Charmaambaram Mundamaalam,
Priyam Sankaram Sarvanaatham Bhajaami.
Pracandam Prakrstam Pragalbham Paresham,
Akhandam Ajam Bhaanukoti Prakaasam.
Trayah Shula Nirmulanam Shula Paanim,
Bhaje Ham Bhavaani Patim Bhaava Gamyam.
Kalaatitata Kalyaana Kalpanta Kaari,
Sadaa Sajjanaa Nanda Daataa Purarih.
Chidaananda Sandoha Mohaapahaari,
Prasida Prasida Prabho Manmathaarih.
Na Yaavad Umaanaatha Paadaaravindam,
Bhajantiha Loke Parevaa Naraanam.
Na Taavat Sukham Shaanti Santaapa Naasham,
Prasida Prabho Sarva Bhutaa Dhivaasam.
Na Janaami Yogam Japam Naiva Pujam,
Nato Ham Sadaa Sarvadaa Sambhu Tubhyam.
Jaraa Janma Duhkhaugha Taatapya Maanam,
Prabho Paahi Apan Namaamisha Shambho.
Rudrastakam Idam Proktam Viprena Haratosaye,
Ye Pathanti Nara Bhaktya Tesam Sambhuh Prasidati.
।। Iti Shri Goswami Tulsidaskritam Shri Rudrashtakam Sampurnam ।।
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