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बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों I
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो I
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो I
अर्थ – हे हनुमान जी आपने अपने बाल्यावस्था में सूर्य को निगल लिया था जिससे तीनों लोक में अंधकार फ़ैल गया और सारे संसार में भय व्याप्त हो गया। इस संकट का किसी के पास कोई समाधान नहीं था। तब देवताओं ने आपसे प्रार्थना की और आपने सूर्य को छोड़ दिया और इस प्रकार सबके प्राणों की रक्षा हुई। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महामुनि साप दियो तब , चाहिए कौन बिचार बिचारो I
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो I को
अर्थ – बालि के डर से सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर रहते थे। एक दिन सुग्रीव ने जब राम लक्ष्मण को वहां से जाते देखा तो उन्हें बालि का भेजा हुआ योद्धा समझ कर भयभीत हो गए। तब हे हनुमान जी आपने ही ब्राह्मण का वेश बनाकर प्रभु श्रीराम का भेद जाना और सुग्रीव से उनकी मित्रता कराई। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जु , बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो I
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब , लाए सिया-सुधि प्राण उबारो I को
अर्थ – जब सुग्रीव ने आपको अंगद, जामवंत आदि के साथ सीता की खोज में भेजा तब उन्होंने कहा कि जो भी बिना सीता का पता लगाए यहाँ आएगा उसे मैं प्राणदंड दूंगा। जब सारे वानर सीता को ढूँढ़ते ढूँढ़ते थक कर और निराश होकर समुद्र तट पर बैठे थे तब आप ही ने लंका जाकर माता सीता का पता लगाया और सबके प्राणों की रक्षा की। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
रावण त्रास दई सिय को सब , राक्षसी सों कही सोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाए महा रजनीचर मरो I
चाहत सीय असोक सों आगि सु , दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो I को
अर्थ – रावण के दिए कष्टों से पीड़ित और दुखी माता सीता जब अपने प्राणों का अंत कर लेना चाहती थी तब हे हनुमान जी आपने बड़े बड़े वीर राक्षसों का संहार किया। अशोक वाटिका में बैठी सीता दुखी होकर अशोक वृक्ष से अपनी चिता के लिए आग मांग रही थी तब आपने श्रीराम जी की अंगूठी देकर माता सीता के दुखों का निवारण कर दिया। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
बान लाग्यो उर लछिमन के तब , प्राण तजे सूत रावन मारो I
लै गृह बैद्य सुषेन समेत , तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो I
आनि सजीवन हाथ दिए तब , लछिमन के तुम प्रान उबारो I को
अर्थ – जब मेघनाद ने लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार किया और लक्ष्मण मूर्छित हो गए तब हे हनुमान जी आप ही लंका से सुषेण वैद्य को घर सहित उठा लाए और उनके परामर्श पर द्रोण पर्वत उखाड़कर संजीवनी बूटी लाकर दी और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
रावन जुध अजान कियो तब , नाग कि फाँस सबै सिर डारो I
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल , मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु , बंधन काटि सुत्रास निवारो I को
अर्थ – रावण ने युद्ध में राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया। तब श्रीराम जी की सेना पर घोर संकट आ गई। तब हे हनुमान जी आपने ही गरुड़ को बुलाकर राम लक्ष्मण को नागपाश के बंधन से मुक्त कराया और श्रीराम जी की सेना पर आए संकट को दूर किया। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो I
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि , देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो I
जाये सहाए भयो तब ही , अहिरावन सैन्य समेत संहारो I को
अर्थ – लंका युद्ध में रावण के कहने पर जब अहिरावण छल से राम लक्ष्मण का अपहरण करके पाताल लोक ले गया और अपने देवता के सामने उनकी बलि देने की तैयारी कर रहा था। तब हे हनुमान जी आपने ही राम जी की सहायता की और अहिरावण का सेना सहित संहार किया। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
काज किये बड़ देवन के तुम , बीर महाप्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसे नहिं जात है टारो I
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु , जो कछु संकट होए हमारो I को
अर्थ – हे हनुमान जी, आप विचार के देखिये आपने देवताओं के बड़े बड़े काम किये हैं। मेरा ऐसा कौन सा संकट है जो आप दूर नहीं कर सकते। हे हनुमान जी आप जल्दी से मेरे सभी संकटों को हर लीजिये। संसार में ऐसा कौन है जो आपके संकटमोचन नाम को नहीं जानता।
|| दोहा ||
लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर I
वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर II
अर्थ – हे हनुमान जी, आपके लाल शरीर पर सिंदूर शोभायमान है। आपका वज्र के समान शरीर दानवों का नाश करने वाली है। आपकी जय हो, जय हो, जय हो।
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे । रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अंजनि पुत्र महाबलदायी । सन्तन के प्रभु सदा सहाई।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुध लाए।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारि असुर संहारे । सियारामजी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे । आणि संजीवन प्राण उबारे ।।
पैठी पताल तोरि जमकारे । अहिरावण की भुजा उखारे ।।
बाएं भुजा असुर दल मारे । दाहिने भुजा संतजन तारे ।।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई । आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमानजी की आरती गावै । बसि बैकुंठ परमपद पावै ।।
लंकविध्वंस किए रघुराई । तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ।।
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
PDF Name: | Hanuman-Ashtak |
Author : | Live Pdf |
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