datta bavani pdf free download here. Datta Bavani भगवान दत्तात्रेय को समर्पित एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तवन है। यह मुख्य रूप से गुजराती भाषा में रचित है और दत्त भक्तों के बीच इसे दिव्य चमत्कारी पाठ माना जाता है। दत्त भगवान त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—के संयुक्त स्वरूप हैं, इसलिए दत्तबावनी का पाठ मन, बुद्धि और आत्मा तीनों को आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है।
Datta Bavani क्या है?
दत्त बवानी एक भक्तिपूर्ण स्तुति है जहाँ भगवान दत्तात्रेय की महिमा, उनके दिव्य रूप, शक्तियों और कृपा का वर्णन मिलता है। इसे रोजाना पढ़ने से मानसिक शांति, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। दत्त बवानी सदियों से दत्त भक्तों का प्रमुख पाठ रहा है और इसे शुभ कार्यों से पहले पढ़ना अत्यंत शुभ माना गया है।
Datta Bavani कैसे पढ़ें? (पाठ विधि)
Datta Bavani पढ़ने के लिए विशेष नियम नहीं हैं, लेकिन पारंपरिक तरीके से इसे इस प्रकार पढ़ा जाता है—
- सुबह स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें
- भगवान दत्तात्रेय के चित्र या प्रतिमा के सामने दीपक जलाएँ
- शांत मन से पूर्ण श्रद्धा के साथ पाठ करें
- पाठ के बाद भगवान दत्तात्रेय से प्रार्थना करेंएक बार पूरी दत्त बवानी पढ़ना पर्याप्त है
- विशेष मनोकामना हेतु भक्त 11 बार या 108 बार पाठ भी करते हैं
Datta Bavani क्यों पढ़ें? (लाभ)
- दत्त बवानी पढ़ने के अनेक आध्यात्मिक और मानसिक फायदे बताए गए हैं—
- मन को शांति व स्थिरता मिलती है
- भय, नकारात्मक ऊर्जा और मानसिक तनाव दूर होता है
- जीवन में सफलता और समृद्धि आती है
- बाधाओं, संकट और परेशानियों से बचाव
- मनोकामना पूर्ण होने की मान्यता
- घर में शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- दत्त बवानी को शक्तिशाली “प्रोटेक्शन स्तवन” भी कहा जाता है।
श्री दत्तबावनी किसने लिखी?
इस पावन स्तवन के रचनाकार पुज्य रंगलालजी महाराज माने जाते हैं।
उन्होंने भगवान दत्तात्रेय की कृपा से यह दिव्य स्तुति संसार को समर्पित की।
श्री दत्तबावनी in Hindi
श्री दत्तबावनी मूल गुजराती
जय योगीश्वर दत्त दयाळ । तु ज एक जगमां प्रतिपाळ ॥ १॥ अत्र्यनसूया करी निमित्त । प्रगट्यो जगकारण निश्चित ॥ २॥ ब्रह्माहरिहरनो अवतार । शरणागतनो तारणहार ॥ ३॥ अन्तर्यामि सतचितसुख । बहार सद्गुरु द्विभुज सुमुख् ॥ ४॥ झोळी अन्नपुर्णा करमाह्य । शान्ति कमन्डल कर सोहाय ॥ ५॥ क्याय चतुर्भुज षडभुज सार । अनन्तबाहु तु निर्धार ॥ ६॥ आव्यो शरणे बाळ अजाण । उठ दिगंबर चाल्या प्राण ॥ ७॥ सुणी अर्जुण केरो साद । रिझ्यो पुर्वे तु साक्शात ॥ ८॥ दिधी रिद्धि सिद्धि अपार । अंते मुक्ति महापद सार ॥ ९॥ किधो आजे केम विलम्ब । तुजविन मुजने ना आलम्ब ॥ १०॥ विष्णुशर्म द्विज तार्यो एम । जम्यो श्राद्ध्मां देखि प्रेम ॥ ११॥ जम्भदैत्यथी त्रास्या देव । किधि म्हेर ते त्यां ततखेव ॥ १२॥ विस्तारी माया दितिसुत । इन्द्र करे हणाब्यो तुर्त ॥ १३॥ एवी लीला क इ क इ सर्व । किधी वर्णवे को ते शर्व ॥ १४॥ दोड्यो आयु सुतने काम । किधो एने ते निष्काम ॥ १५॥ बोध्या यदुने परशुराम । साध्यदेव प्रह्लाद अकाम ॥ १६॥ एवी तारी कृपा अगाध । केम सुने ना मारो साद ॥ १७॥ दोड अंत ना देख अनंत । मा कर अधवच शिशुनो अंत ॥ १८॥ जोइ द्विज स्त्री केरो स्नेह । थयो पुत्र तु निसन्देह ॥ १९॥ स्मर्तृगामि कलिकाळ कृपाळ । तार्यो धोबि छेक गमार ॥ २०॥ पेट पिडथी तार्यो विप्र । ब्राह्मण शेठ उगार्यो क्षिप्र ॥ २१॥ करे केम ना मारो व्हार । जो आणि गम एकज वार ॥ २२॥ शुष्क काष्ठणे आंण्या पत्र । थयो केम उदासिन अत्र ॥ २३॥ जर्जर वन्ध्या केरां स्वप्न । कर्या सफळ ते सुतना कृत्स्ण ॥ २४॥ करि दुर ब्राह्मणनो कोढ । किधा पुरण एना कोड ॥ २५॥ वन्ध्या भैंस दुझवी देव । हर्यु दारिद्र्य ते ततखेव ॥ २६॥ झालर खायि रिझयो एम । दिधो सुवर्ण घट सप्रेम ॥ २७॥ ब्राह्मण स्त्रिणो मृत भरतार । किधो संजीवन ते निर्धार ॥ २८॥ पिशाच पिडा किधी दूर । विप्रपुत्र उठाड्यो शुर ॥ २९॥ हरि विप्र मज अंत्यज हाथ । रक्षो भक्ति त्रिविक्रम तात ॥ ३०॥ निमेष मात्रे तंतुक एक । पहोच्याडो श्री शैल देख ॥ ३१॥ एकि साथे आठ स्वरूप । धरि देव बहुरूप अरूप ॥ ३२॥ संतोष्या निज भक्त सुजात । आपि परचाओ साक्षात ॥ ३३॥ यवनराजनि टाळी पीड । जातपातनि तने न चीड ॥ ३४॥ रामकृष्णरुपे ते एम । किधि लिलाओ कई तेम ॥ ३५॥ तार्या पत्थर गणिका व्याध । पशुपंखिपण तुजने साध ॥ ३६॥ अधम ओधारण तारु नाम । गात सरे न शा शा काम ॥ ३७॥ आधि व्याधि उपाधि सर्व । टळे स्मरणमात्रथी शर्व ॥ ३८॥ मुठ चोट ना लागे जाण । पामे नर स्मरणे निर्वाण ॥ ३९॥ डाकण शाकण भेंसासुर । भुत पिशाचो जंद असुर ॥ ४०॥ नासे मुठी दईने तुर्त । दत्त धुन सांभाळता मुर्त ॥ ४१॥ करी धूप गाये जे एम । दत्तबावनि आ सप्रेम ॥ ४२॥ सुधरे तेणा बन्ने लोक । रहे न तेने क्यांये शोक ॥ ४३॥ दासि सिद्धि तेनि थाय । दुःख दारिद्र्य तेना जाय ॥ ४४॥ बावन गुरुवारे नित नेम । करे पाठ बावन सप्रेम ॥ ४५॥ यथावकाशे नित्य नियम । तेणे कधि ना दंडे यम ॥ ४६॥ अनेक रुपे एज अभंग । भजता नडे न माया रंग ॥ ४७॥ सहस्र नामे नामि एक । दत्त दिगंबर असंग छेक ॥ ४८॥ वंदु तुजने वारंवार । वेद श्वास तारा निर्धार ॥ ४९॥ थाके वर्णवतां ज्यां शेष । कोण रांक हुं बहुकृत वेष ॥ ५०॥ अनुभव तृप्तिनो उद्गार । सुणि हंशे ते खाशे मार ॥ ५१॥ तपसि तत्त्वमसि ए देव । बोलो जय जय श्री गुरुदेव ॥ ५२॥ ॥ अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त ॥