श्री गुरु बृहस्पति देव चालीसा, Brihaspati Chalisa in hindi pdf free download here.
श्री गुरु बृहस्पति देव चालीसा देवगुरु बृहस्पति को समर्पित एक भक्ति पाठ है। ज्योतिष में, बृहस्पति ग्रह को ज्ञान, धर्म, संतान, विवाह, सौभाग्य और धन का कारक माना जाता है। इस चालीसा का पाठ गुरु ग्रह को प्रसन्न करने और उसके शुभ फल प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
चालीसा पाठ के लाभ (मान्यतानुसार)
- ज्ञान और बुद्धि: गुरु बृहस्पति ज्ञान और बुद्धि के देवता हैं। इस चालीसा के नियमित पाठ से व्यक्ति की ज्ञान-प्राप्ति की क्षमता बढ़ती है।
- आर्थिक समृद्धि: यह पाठ धन-संपत्ति, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि लाने में सहायक माना जाता है।
- विवाह और संतान: जिन लोगों के विवाह में देरी हो रही हो या संतान सुख में बाधा आ रही हो, उनके लिए यह पाठ विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
- स्वास्थ्य: यह पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शुभ माना जाता है।
- समस्त संकटों का नाश: यह मान्यता है कि बृहस्पति देव की कृपा से सभी प्रकार के कष्ट, दोष और नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं।
Brihaspati Chalisa Lyrics
श्री गुरु बृहस्पति देव चालीसा
दोहा
गाउे नित मंगलाचरण, गणपति मेरे नाथ।
करो कृपा माँ शारदा, जीव रहें मेरे साथ।
चौपाई
वीर देव भक्तन हितकारी।सुर नर मुनिजन के उद्धारी।
वाचस्पति सुर गुरू पुरोहित। कमलासन बृहस्पति विराजित।
स्वर्ण दंड वर मुद्रा धारी। पात्र माल शोभित भुज चारी।
है स्वर्णिम आवास तुम्हारा।पीत वदन देवों में न्यारा।
स्वर्णारथ प्रभु अति ही सुखकर । पाण्डुर वर्ण अश्व चले जुतकर।
स्वर्ण मुकुट पीताम्बर धारी। अंगिरा नन्दन गगन विहारी।
अज अगम्य अविनाशी स्वामी । अनन्त वरिष्ठ सर्वज्ञ नामी।
श्रीमत् धर्म रूप धन दाता ।शरणागत सर्वापद् त्राता।
पुष्य नाथ ब्रह्म विद्या विशारद। गुण बरने सुर गण मुनि नारद।
कठिन तप प्रभास में कीन्हा।शंकर प्रसन्न हो वर दीन्हा।
देव गुरू ग्रह पति कहाओ। निर्मल मति वाचस्पति पाओ।
असुर बने सुर यज्ञ विनाशक । करें सुरक्षित मन्त्र से सुर मख।
बनकर देवों के उपकारी । दैत्य विनाशे विघ्न निवारी।
बृहस्पति धनु मीन के नायक। लोक द्विज नय बुद्धि प्रदायक।
मावस वीर वार ब्रत धारे।आश्रय दें सर्व पाप निवारें।
पीताम्बर हल्दी पीला अन्न। शक्कर मधु पुखराज भू-लवण।
पुस्तक स्वर्ण अश्व दान कर।ददेवें जीव अनेक सुखद वर।
विद्या सिन्धु स्वयं कहलाते। भक्तों को सन्मार्ग चलाते।
इन्द्र किया अपमान अकारण। विश्वरूपा गुरू किये धारण।
बढ़ा कष्ट सब राज गँवाया। दानव ध्वज स्वर्ग लहराया।
क्षमा माँग फिर स्तुति कीन्ही ।विपदा सकल जीव हर लीन्ही।
बढ़ा देवों में मान तुम्हारा।कीरति गावें सकल संसारा।
दोष बिसार शरण में लीजै।उर आनन्द प्रभु भर दीजै।
सदगुरू तेरी प्रबल माया।तेरा पारा ना कोई पाया।
सब तीर्थ गुरू चरण समाये। समझे विरला बहु सुख पाये।
अमृत वारिद सदृश वाणी।हिरदय धार भए ब्रह्ज्ञानी।
शोभा मुख से बरनि न जाईं।देवें भक्ति जीव मनचाही।
जो अनाथ ना कोइ सहाई । लख चोरासी पार कराहीं।
प्रथम गुरू का पूजन कीजे। गुरू चरणामृत रुच-रुच पीजै।
मृग तृष्णा गुरू दरशन राखी। मिले मुक्ति हो सब जग साखी।
चरणन रज सतूगुरु सिर धारे।पा गए दास पदारथ सारे।
जग के कार विहारण दोड़े।गुरू मोह के बन्धन तोड़े।
पारस माणिक नीलम रत्ना। गुरूवर सम्मुख व्यर्थ कल्पना।
कर निष्काम भक्ति गुरुवर की। सुन्दर छवि धारे सुखकर की।
गुरू पताका जो फहारायें। मन क्रम वचन ध्यान से ध्यायें।
काल रूप यम नहीं सतावें। निश्चय गुरुवर पिंड छुड़ावें।
भूत पिशाच्र निकट ना आवें।रोगी रोग मुक्त हो जावें।
संतती हीन संस्तुति गावें।मंगल होय पुत्र धन पावें।
“मनु! गुण गाहिरदय हर्षावे ।स्नेह जीव चरणों में लावे।
जीव चालीसा पढ़े पढ़ावे।पूर्ण शांति को पल में पावें।
दोहा
मात पिता के संग मनु, गुरू चरण में लीन।
किरपा सब पर कीजिये, जान जगत में दीन।
॥ इति श्री बृहस्पति चालीसा ॥
॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||
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