मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964) हिंदी साहित्य के उन प्रमुख कवियों में से एक हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपराओं और राष्ट्रीयता को अपनी कविताओं में प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दी। उनका जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के चिरगाँव नामक स्थान पर हुआ। सरल, सहज और गहन विचारशीलता से परिपूर्ण उनकी कविताएँ आज भी हिंदी साहित्य के पाठकों के बीच आदर और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। मैथिलीशरण गुप्त को हिंदी साहित्य में खड़ी बोली के प्रतिष्ठापक के रूप में जाना जाता है। उन्हें “राष्ट्रकवि” की उपाधि से विभूषित किया गया है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म एक समृद्ध और सांस्कृतिक परिवार में हुआ था। उनके पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता काशीबाई धार्मिक और साहित्यिक रुचियों वाले व्यक्ति थे। बचपन से ही गुप्त जी ने परिवार के धार्मिक और नैतिक वातावरण में साहित्य के बीज बोए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा चिरगाँव में ही हुई, लेकिन औपचारिक शिक्षा सीमित रही। गुप्त जी ने स्वाध्याय और आत्मअनुशासन के माध्यम से हिंदी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं का गहन अध्ययन किया। यह स्व-अध्ययन उनकी रचनाओं में गहराई और विविधता लाने का आधार बना।
साहित्यिक यात्रा की शुरुआत
मैथिलीशरण गुप्त की साहित्यिक यात्रा 1909 में शुरू हुई जब उनकी पहली कविता “रंग में भंग” प्रकाशित हुई। उनकी इस रचना को पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सराहा और उसे प्रतिष्ठित पत्रिका “सरस्वती” में स्थान दिया। यह उनकी साहित्यिक यात्रा का प्रारंभिक चरण था, लेकिन उनकी प्रतिभा ने जल्द ही उन्हें हिंदी साहित्य के उच्चतम शिखर पर पहुँचा दिया।
प्रमुख कृतियाँ
गुप्त जी ने अपने साहित्यिक जीवन में अनेक उत्कृष्ट कृतियाँ प्रस्तुत कीं। उनकी कविताएँ भारतीय इतिहास, संस्कृति और मानवीय भावनाओं का सजीव चित्रण करती हैं। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
- साकेत: यह गुप्त जी का प्रसिद्ध महाकाव्य है, जिसमें उन्होंने रामायण की कथा को उर्मिला के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। इसमें स्त्री के त्याग, धैर्य और मानसिक स्थिति का मार्मिक चित्रण किया गया है।
- भारत-भारती: यह रचना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौर में लिखी गई और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत है। इसमें भारतीय समाज, संस्कृति और स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित किया गया है।
- जयद्रथ वध: महाभारत की एक घटना पर आधारित इस काव्य में गुप्त जी ने कर्तव्य और धर्म के बीच संघर्ष को उजागर किया है।
- पंचवटी: यह रामायण के अरण्यकांड पर आधारित है और इसमें राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास का चित्रण है।
- सिद्धराज: यह रचना भारतीय इतिहास के गौरवशाली अध्यायों में से एक पर आधारित है।
भाषा और शैली
गुप्त जी की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता उनकी भाषा और शैली है। उन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया और इसे एक नई पहचान दी। उनकी भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है, जिसमें तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर समावेश है। उनकी शैली में भावुकता, दार्शनिकता और नैतिकता का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
साहित्यिक विशेषताएँ
मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं में राष्ट्रभक्ति, भारतीय संस्कृति और परंपराओं का गहरा प्रभाव है। उनकी रचनाओं में स्त्री की महत्ता, मानवता, और सामाजिक सुधार के संदेश प्रमुखता से उभरते हैं। उन्होंने न केवल पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं को अपने साहित्य का आधार बनाया, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी उठाया। उनकी साहित्यिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- राष्ट्रीय भावना: मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय भावना के कवि थे। उनकी कृति “भारत-भारती” में प्राचीन भारत के गौरव और वर्तमान स्थिति की विवेचना की गई है। यह रचना स्वतंत्रता संग्राम के समय प्रेरणा का स्रोत बनी।
- सामाजिक जागरण: गुप्त जी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई। हिंदू-मुस्लिम एकता, अछूत समस्या, और स्त्री अधिकारों पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया। उनकी रचनाएँ सामाजिक सुधार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
- नारी भावना: गुप्त जी ने नारी के त्याग, सहनशीलता और अधिकारों को अपनी कविताओं में प्रमुखता दी। उनकी रचना “साकेत” में उर्मिला के त्याग का मर्मस्पर्शी चित्रण इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।
- प्रकृति चित्रण: गुप्त जी के काव्य में प्रकृति का मनोहारी वर्णन मिलता है। यद्यपि उन्होंने छायावादी कवियों की तरह सूक्ष्मता से प्रकृति का चित्रण नहीं किया, फिर भी उनकी कविताएँ पाठकों के मन में प्राकृतिक सौंदर्य की छवि अंकित कर देती हैं।
- भक्ति भावना: वैष्णव परिवार में जन्मे गुप्त जी श्रीराम के सच्चे भक्त थे। उनकी कविताओं में राम के चरित्र और भारतीय धर्म-दर्शन की गहरी झलक मिलती है।
- गांधीवादी विचारधारा: गुप्त जी गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे। उनकी रचनाओं में सत्याग्रह, अहिंसा और मानवता जैसे गांधीजी के सिद्धांतों का स्पष्ट निरूपण मिलता है।
- समन्वयवादी भावना: गुप्त जी की रचनाएँ धार्मिक समन्वय की भावना से भरपूर हैं। उन्होंने राम और कृष्ण दोनों पर रचनाएँ कीं, जो उनके संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
- रस योजना: गुप्त जी की कविताओं में वीर, श्रृंगार और करुण जैसे विभिन्न रसों का उत्कृष्ट प्रयोग हुआ है। “साकेत” और “यशोधरा” में वियोग श्रृंगार का मार्मिक चित्रण मिलता है, जबकि देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाएँ वीर रस से भरपूर हैं।
व्यक्तित्व
मैथिलीशरण गुप्त केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि एक विचारक, दार्शनिक और समाज सुधारक भी थे। उनका जीवन और साहित्य एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। वे सरल और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते थे। उनका राष्ट्रप्रेम, सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण उनकी कविताओं में परिलक्षित होता है।
सम्मान और उपाधियाँ
मैथिलीशरण गुप्त को उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें 1953 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनके योगदान को देखते हुए उन्हें “राष्ट्रकवि” की उपाधि दी गई, जो उनके कृतित्व और व्यक्तित्व का सम्मान है।
गुप्त जी का प्रभाव
मैथिलीशरण गुप्त का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक प्रतिष्ठा दी और इसे कविता का प्रभावी माध्यम बनाया। उनके साहित्य ने भारतीय समाज को नैतिकता, आदर्श और सांस्कृतिक मूल्यों की प्रेरणा दी।
उपसंहार
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य भारतीय संस्कृति और परंपराओं का आइना है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से न केवल साहित्यिक स्तर पर योगदान दिया, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी प्रेरित किया। उनके जीवन और रचनाएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी कृतियाँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज में नैतिकता और आदर्शों की स्थापना में भी सहायक हैं। मैथिलीशरण गुप्त का योगदान हिंदी साहित्य और भारतीय समाज के लिए अविस्मरणीय है।